भारत में किराएदारी का मकसद लोगों को रहने के लिए घर उपलब्ध कराना और प्रॉपर्टी मालिकों को उनकी संपत्ति से आमदनी देना है। जब कोई व्यक्ति कई सालों तक किराए के मकान में रहता है, तो कभी-कभी भ्रम फैल जाता है कि क्या वह मकान उसका हो सकता है। कई बार लोगों का यह भी मानना होता है कि एक निश्चित अवधि के बाद किराएदार मकान का मालिक बन जाता है, लेकिन इसकी हकीकत कानून में साफ तौर पर दर्ज है।
घर या दुकान किराए पर देना और लेना दोनों के लिए उचित नियम और कानूनी अधिकार निर्धारित हैं। मकान मालिकों और किराएदारों दोनों के अपने-अपने हक और जिम्मेदारियां होती हैं, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है। अगर कानून और अनुबंध की शर्तें नहीं मानी जातीं, तो विवाद पैदा हो सकता है।
इसीलिए जरूरी है कि हर मकान मालिक और किराएदार देश में लागू किराएदारी कानूनों के बारे में पूरी जानकारी रखे। इससे घर के मालिकों को पता चलेगा कि इतने वर्षों बाद भी उनका हक सुरक्षित कैसे रहता है और किराएदार को किन सीमाओं का पालन करना चाहिए।
Tenancy Law 2025
भारत में आम धारणा है कि लंबे समय तक किसी घर में रहते-रहते किराएदार मालिक बन सकता है। परंतु कानूनन ऐसा तभी संभव है जब ‘एडवर्स पजेशन’ यानी ‘विरोधी कब्जा’ की स्थिति बने। यह प्रावधान लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत आता है।
इस एक्ट के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति मकान मालिक की सहमति के बिना 12 लगातार साल तक किसी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर अपना कब्ज़ा बनाए रखता है, और इस दौरान मकान मालिक अपने हक की रक्षा के लिए कोई कानूनी कदम नहीं उठाता, तब कोर्ट में दावे की प्रक्रिया पूरी होने पर उस व्यक्ति को मालिकाना हक मिल सकता है। सरकारी प्रॉपर्टी के मामले में यह अवधि 30 साल है।
लेकिन केवल 12 साल कब्जा कर लेने से मकान अपने आप किरायेदार का नहीं हो जाता। उसे कानूनी रूप से कोर्ट में एडवर्स पजेशन का दावा करना पड़ता है। कोर्ट लगातार, खुला और मालिक की जानकारी में रहते हुए कब्जे की पुष्टि होने पर ही आदेश देती है।
प्रकार | वर्ष (निरंतर कब्जा) |
---|---|
प्राइवेट प्रॉपर्टी | 12 साल |
सरकारी/पब्लिक | 30 साल |
किराएदारी कानून (Tenancy Law) और सरकार की पॉलिसी
भारत सरकार ने किराएदारी को आधुनिकता देने के लिए मॉडल टेनेन्सी एक्ट (Model Tenancy Act) 2019 और 2021 लागू किया है। इसका उद्देश्य मकान मालिक और किरायेदार दोनों के अधिकारों की रक्षा करना और पारदर्शिता लाना है।
इस कानून के तहत मकान मालिक और किरायेदार के बीच लिखित एग्रीमेंट होना अनिवार्य है। रेंट, डिपाजिट, मरम्मत की जिम्मेदारी, नवीनीकरण और निकासी की शर्तें इसमें दर्ज होती हैं। किराएदार तभी तक प्रॉपर्टी पर काबिज रह सकता है, जब तक उसके पास वैध किराएदारी अनुबंध हो।
लिखित अनुबंध के रहते 12 साल या अधिक समय तक रहने के बावजूद, मकान मालिक लिखित सबूत के साथ कोर्ट में केस कर किराएदार को निकाल सकता है। यदि मालिक या उसके वारिस कोर्ट को बताते हैं कि कब्जा उनकी इजाज़त से था, तो किराएदार एडवर्स पजेशन नहीं जता सकता।
मकान मालिक और किराएदार के कानूनी अधिकार
मकान मालिक के पास मुख्य अधिकार हैं कि वह उचित रेंट वसूल सकते हैं, अनुबंध के अनुसार किराएदार को निकाल सकते हैं और अपनी संपत्ति के नुकसान की भरपाई करा सकते हैं। वहीं, किराएदार को रहने की सुविधा, उचित रेंट, सुरक्षा डिपाजिट रिटर्न और उचित नोटिस का अधिकार भी कानून में दर्ज है।
अगर किराएदार अनुबंध की शर्तें तोड़ता है या मालिक के हक का उल्लंघन करता है, तो मालिक कोर्ट में जाकर कब्जा वापसी के लिए केस कर सकता है। मालिक केवल कानूनी प्रक्रिया के जरिए ही किराएदार को मकान खाली कराने का अधिकार रखते हैं।
कोर्ट में कब्जा और मालिकाना हक का दावा
कोई किराएदार तभी मालिकाना हक का दावा कर सकता है, जब उसकी उपस्थिति विरोधी (hostile) और मालिक की सहमति के बिना हो। इसे साबित करने के लिए किराएदार को सार्वजनिक, लगातार और खुला कब्जा दिखाना पड़ता है। अगर किराए का अनुबंध है, तो कब्जा हमेशा मालिक की संज्ञा में माना जाता है, और उस स्थिति में एडवर्स पजेशन का दावा सफल नहीं होता।
मालिक समय–समय पर किरायेदारी का नवीनीकरण करते रहें और किराए की रसीद रखें तो उनका हक सुरक्षित रहता है। जरूरत पड़ने पर कोर्ट का सहारा ले सकते हैं।
संक्षिप्त जानकारी
12 साल लगातार विरोधी और बगैर अनुमति के कब्जा करने पर ही मकान मालिकाना हक रोम सकता है, वो भी कोर्ट के आदेश से। साधारण किराये की स्थिति में मकान अपने आप किराएदार का नहीं होता। हमेशा उचित लिखित अनुबंध, समय-समय पर रेंट लेने, और कानूनी अधिकार समझकर काम करें।
इसलिए, मकान मालिक और किराएदार दोनों को अपने अधिकार और जिम्मेदारियां अच्छी तरह जाननी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई विवाद या संपत्ति पर दावा का खतरा न हो।